चाय की टपरी

चाय की टपरी

शाम के 7 बज रहे थे, जनवरी का ठंडा महीना उस पर आसमान से होती हल्की हल्की बर्फबारी, इस साल भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए थे दिसंबर से लेकर अब तक तीन बार बर्फबारी हुई थी वो भी तकरीबन 4/5 दिनो के आगे पीछे।
शिमला से उपर के इलाकों में तो करीब करीब 2 फूट गहरी बर्फ पड़ चुकी थी, ऐसे में ट्रक चलाना पूरी आफत का काम, पर बेचारा वीरेंद्र,  इस मौसम में भी काम कर रहा था जब की उसके साथ के सारे ड्राइवर घर में आग ताप रहे थे। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ ऐसे में जरा सी चूक हो जाए तो सीधा खाई में ही मिलोगे और कोई पूछने भी नहीं आएगा।
ये तो भला हो उसके क्लीनर का चलने से पहले ही रास्ते का जुगाड कर लिया था और दोनो ने रामपुर से ही बोतल ले ली थी और 2/3 तगड़े तगड़े पेग पेट में उतार लिए थे। वैसे ट्रक के अंदर केबिन में थोड़ी इंजन की गर्मी थी पर शीशों से आती ठंड मफलर और कोट के अंदर घुस रही थी जैसे कोई बर्फ का पिघला ठंडा पानी उनके उपर फेंक रहा हो।
यार, शिव, ध्यान कर, कहीं रुक कर गरमा गर्म चाय हो जाए, इस ठंड में स्टीयरिंग काटते काटते मेरे तो हाथ पैर सुन्न पड़े जा रहे हैं, और उपर से ये बर्फीला तूफान, लगता है आज फिर कम से कम 1/1.5 फूट बर्फ पड़ेगी। टाइम से शिमला पहुंच कर गाड़ी पार्क करके क्वार्टर में रजाई के हवाले हो जायेंगे।
देखता चल कहीं कोई चाय की दुकान खुली हो तो, कह कर वीरेंद्र ने अपना ध्यान केंद्रित कर के ट्रक को सुरक्षित स्पीड में आगे बढ़ाया।

हां .. हां उस्ताद जी, आज तो गजब की ठंडी है, लगता तो नहीं कोई दुकान खुली होगी, बाकी आपकी और मेरी किस्मत... आप तो बिना एवरेज की चिंता किए ट्रक को नीचे के गियर में चलाते रहो, थोड़ी थोड़ी गर्मी मिलती रहे यहां तो ठंड के मारे हड्डियां कांप रही हैं, कह कर शिव अपने दोनो पांव बोनट पर टिका कर बाहर देखने की कोशिश करने लगा।
लगातार होती बर्फबारी से चारों ओर ऐसा लग रहा था रूई की एक चादर सी बिछ गई थी और जमीन से आसमान तक सफेदी ही सफेदी नजर आ रही थी।
करीब 10 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद, शिव के इशारे पर वीरेंद्र ने ट्रक को धीमा किया, थोड़ी दूर पर उजाले की एक हल्की सी रोशनी देख कर उसके चेहरे पर मुस्कान खिल उठी, आखिर इस बियाबान में कोई होटल तो मिला। थोड़ा आगे बढ़ने पर एक छोटा सा ढाबा नुमा होटल एक झोपड़ी में दिखाई दिया, बिना एक भी पल गवाएं उसने तुरंत ट्रक को सावधानी से ढाबे के सामने सड़क के किनारे पर रोक दिया।
भाई शिव हमारी किस्मत इतनी भी खराब नहीं, चल, चल कर गरमा गरम चाय और कुछ खा पी लेते है, वीरेंद्र ने मफलर और कोट को अपने शरीर पर कस कर लपेटते हुए कहा।
हां हां, चलो उस्ताद जी, गड्डी बंद न करना, एक बार बंद हुई तो इस मौसम में फिर नहीं स्टार्ट होगी, शिव हंसते हुए बोला।
दोनो दोस्त, बातें करते हुए लपक कर ढाबे के अंदर घुस गए।
उनको आता देख कर ढाबे के मालिक के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई, वरना इस खराब मौसम में ग्राहक आना नामुमकिन सा ही लगता था।
आओ जी आओ, बड़ी ठंड है, भट्टी के पास ही आ जाओ, आप लोग कहां इस मौसम में चले निकल पड़े, ढाबे वाला खीसें निपोरते हुए बोला।
भाई साहब सब पापी पेट का सवाल है, वरना कौन इस ठंड में घर से निकलना चाहता है। ट्रक भी ठंड से जम गया है, वो तो हमारा ही दिल जानता है कैसे इस ठंड में काम कर रहे हैं, वीरेंद्र हाथ सेकते हुए बोला।
हां जी बड़ा मुश्किल काम है आप लोगों का तो, ढाबे वाला उसे खुश करने की गरज से बोला, अच्छा जी बताओ क्या खाओगे पियोगे, आप लोग?
आप ऐसा करो, गर्मा गर्म परोठे और चाय बना दो, भूख भी लगी है और ठंड भी, वीरेंद्र बोला, गजब ठंड है भाई।
ढाबे वाला फुर्ती से पराठें बनाने में जुट गया साथ ही उसने दूसरी तरफ चाय भी चढ़ा दी।
कुछ देर में चाय और पराठे तैयार हो गए, और उसने गर्म पराठे प्लेट में परोस दिए।
वीरेंद्र और शिव आग तापते हुए गर्म पराठों का स्वाद लेने लगे, तभी वीरेंद्र ने देखा ढाबे वाले का चाय का गिलास कुछ गंदा सा था।
उसने उसे रोकते हुए कहा, भाई देख तो ले, ग्लास में जूठन लगी है, गंदे गिलास में ही चाय पिला देगा।
अरे नहीं नहीं उस्ताद जी, गलती हो गई, अभी साफ करवाता हूं। उसने तुरंत जोर से आवाज लगाई, ओए छोटू, इधर आ, देख, ग्लास साफ नहीं धुले, ढंग से काम नहीं करता।
ढाबे के पिछवाड़े का दरवाजा खुला, उसके साथ ही बर्फीली ठंडी हवा और एक 10–12 साल का पतला दुबला लड़का अंदर आया।
उसे देखते ही ढाबे का मालिक गरज कर बोला, जा, सारे ग्लास दुबारा से धो कर ला, कामचोर कहीं का....
वो लड़का अपने ठंड से कांपते हाथों से सारे ग्लास समेटने लगा, वीरेंद्र गौर से उसे देख रहा था।
उसके बदन पर एक झीनी सी कमीज और एक फटा पुराना स्वेटर था, जिसमे ऊन कम और छेद ज्यादा थे, उसके हाथ ठंड में पानी का काम करते करते लगभग नीले पड़ चुके थे, पैरों में चप्पल और पुरानी सी पैंट पहने वो लड़का ना मालूम कैसे इस ठंड को बर्दाश्त कर रहा था।
वीरेंद्र और शिव चुपचाप उस लड़के को काम करते देखते रहे। कुछ देर बाद खाना खा कर और चाय पीने के बाद चलते चलते वीरेंद्र ने अपना बिल चुकाया और 10 रुपए फालतू देकर बोला भाई उस लड़के को मेरी तरफ से एक चाय पिला देना।
ट्रक में चढ़ते हुए तूफान और बर्फ की ठंड अब शिव और वीरेंद्र को बहुत अधिक नहीं लग रही थी और न ही इस मौसम में काम करना इतना मुश्किल........

समाप्त

आभार – नवीन पहल – १०.०२.२०२२ 🌹💐🙏🏻🙏🏻
# वार्षिक लेखन प्रतियोगिता हेतु

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10 Comments

Nand Gopal Goyal

14-Mar-2022 12:23 PM

बहुत खूब

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Abhinav ji

22-Feb-2022 08:00 PM

Very nice

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Astha Singhal

10-Feb-2022 06:24 PM

बहुत बढ़िया

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शुक्रिया जी

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